बिन कहानी की कविता
आज बैठी मैं लिखने कुछ
समझ ना आया क्या हुआ,
एक भी खयाल ना आया ज़ेहन में
अरे ख़त्म हुआ writco का सफर क्या?
सोचा लिखूं एक कहानी
कुछ नई सी या कुछ पुरानी
डरावनी सी रात की कहानी लिखुं
या बच्चों की प्यारी वाणी लिखुं
कहानी तो लंबी होगी
लिखते लिखते थक ना जाऊं
आंखों को भी ध्यान लगाऊं...
फिर सोचा एक कविता लिखी जाए
क्या करें जब शीर्षक ही न सुझाए
हास्य प्रेम या रहस्य, कौन सा रस,
दिमाग बोला आज नहीं आज मेरी बस
हिंदी में qoute बनाऊं ऐसा सोचा
आज दिमाग में पक्का है कोइ लोचा
खिड़की के बाहर का पेड़ मुझपे है हस्ता
बंद कर ले आज का बोरिया बस्ता
रविवार है आराम कर जरा सा
चाय पी पकोड़े खा
बाहर निकल पवन का ले मजा
रविवार की शाम घर में, है सजा
अरे, प्रिय पाठक, मेरे यहां ठंडी है मस्त
बैंगलोर आई हूं, बारिश हो रही जबरदस्त
शिमला मनाली से ज़्यादा ठंडक
एक दिन मज़े कर क्यों नहीं मानता
ऐसे में सोचा कॉफी और केक खाया जाए
जाऊं बाज़ार यह सब लाया जाए
अरे यह क्या, कविता तो फिर भी बन गई
पसंद आई तो बताइएगा
इनाम में चाय पकोड़े कॉफी केक पायिएगा...
© cmcb
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