किस्सा एक सुबह का

आओ सुनाऊं किस्सा एक सुबह का,
एक भुलक्कड़ पति और एक पत्नी का,
पति निकला नौकरी को जल्दी जल्दी,
आनन फानन उठा ले गया पत्नी की डायरी, बिन देखे ये आफत क्या करदी.

पत्नी आई नजर घुमाई,
अरे रे... कहां गई सखी मेरी भाई,
फिर दिमाग दौड़ाया, खयाल आया,
ले गए अपने ऑफिस की सोच,
मेरे पति मेरी डायरी, 
पढ़ लेंगे सब मेरी शायरी...

पत्नी का दिल डूबा, सांसे फूली,पसीना आया,
सबसे पहले फोन मिलाया, अजी सुनते हो,
क्या किया ये कांड, छोड़ गए अपनी को,
 ले गए मेरी डायरी, लौटा दो अब मेरी सखी,
मेरे हृदय की बातें सारी, सब शिकायतें 
सब अरमान सब टीसें मैंने उसमें रखी..

 बॉस कहेगा डायरी लाओगे,
क्या करोगे क्या दिखाओगे,
लगाओ कुछ तिकड़म, मेरी लौटाओ 
खुद की ले जाओ...

पति बिचारे हारे हारे, दिमाग चलाई,
रिक्शा भिजवाई, मेरी डायरी लौटाई,
भला मानस था, इनकी डायरी भिजवाई,
ट्रेन जाए इस से पहले मिल गई इनको
जैसे डूबते को सहारा हो जिनको..

फोन आया बोले सॉरी, आगे न दोहराऊंगा,
समय से उठूंगा , तैयार हो के,
अपने ऑफिस की ही चीज़ें उठाऊंगा...
मुझे न कहो सॉरी, धन्यवाद कहो
उन भैया को जिनकी रिक्शा काम आई,
बॉस की डांट से तुम्हे दिया बचाई,
जाओ ऑफिस आराम से, जल्दी आना शाम को...
ध्यान देना ऑफिस में अपने काम को. 

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